Sunday, July 5, 2015

हम वे ही हैं


तुम्हें पता तो है ही 
बादल,हवा,प्रकाश व जल का कोई आकार नहीं होता 
हमारे एक-एक के लिये वही सही है
जिस रूप में वह हमें मिलता है दिख जाता है। 
वरना श्रण - श्रण बदलते ही रहते हैं उनके आकार, गंध व रंग 
मन व मौसम के हिसाब से। 
यूँ ही ईश्वर भी बसा है 
घट-घट में लिये हुये अनेकानेक भिन्न-भिन्न प्रकार 
और हम हैं 
पल प्रति पल बदलते उसकी आकृति में 
उसका ही एक अंश 
इसलिए हम उसे नहीं ढूंढ पाते क्योंकि 
हम, हम नहीं वे ही हैं । 

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