हमारे जनतंत्र में
पार्टियाँ व सरकारें ऊँचा सुनती हैं
इसलिये आवाज़ के ही
पीछे चलती हैं,
इनको कुछ कहना/सुनाना है तो
अपनी आवाज़ में दम व जोश घोलो
और शहीद भगतसिंह की भाषा में बोलो।
इनको कोई फर्क नहीं पड़ता कि
तुम सच बोलो या झूठ
जो कुछ भी बोलो बस
नोटों या वोटों के तराजू में तुलने वाला ही बोलो।
रामलल्ला हो या अल्लाह
इन्हें कोई मतलब नहीं किसी धर्म-धाम से
इन्हें तो भीड़ इकट्ठी करने वाला बोलो या
भीड़ किधर बहती है? सत्ता कैसे मिलेगी
ऐसा पक्का नुस्खा बोलो।
खरा है,देशी है सफेद है वह धन
जो जन खरीदकर सरकार पलटने/बदलने के काम आता है,
वरन काला है, विदेशी है, पता नहीं कहाँ का हवाला है ?
गुनाह करते पकड़े जाओ
तो विरोधियों की करतूत है,साजिश है,
वरन जनसेवा और नेताओं की शहादत है।
कुछ भी कहो, कुछ भी करो
चाहे गली के आवारा कुत्तोँ के शोर को अंतर्रात्मा
की आवाज मानकर पार्टी तोड़ो, करवट बदलो
चाहे तो गिरगिट-सा आये दिन अपना रंग बदलो
मगर कुछ न देखो,
सच की एक न सुनो
कराह तो किसी अकेले की कतई न सुनो
जब भी सुनो, ऊँचा सुनो,
भीड़ की सुनो,
बस नोट की सुनो,
वोट की सुनो
यही कायदा है इनका।
और अगर इन्हें कुछ सुंनाना ही है तो
ऊँचा बोलो, इकट्ठे बोलो या
शहीद भगतसिंह की भाषा में बोलो।
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