Tuesday, July 28, 2015

शांति कैसी शांति ?

शांति 
तो मिल ही जानी है सबको 
किसी को महात्मा बुद्ध की काया से तो 
किसी को खतरनाक हथियारों की छाया से,
किसी को
जी कर इस धरती के ऊपर और 
किसी को
मरकर धरती के जरा नीचे। 
ऐ दोस्त ! समझो कि 
पूजा और सेवा -
थाली में फूल रखकर की जाती है,
बम सजाकर तो नहीं। 
बम बनाना और उन्हें गले का हार बनाना 
रणनीति या राजनीति का हिस्सा तो हो सकता है मगर 
सजावट,श्रृंगार व शौक का हिस्सा तो नहीं,
वक़्त की मजबूरी तो हो सकती है मगर 
नस्ली शिक्षा तो नहीं। 
शांति तो जीते-जी ही चाहिये वरना 
मुर्दों से तुम क्या धरती सजाओगे, और 
अपनी संतानो के लिये रंगीले कपङों नहीं 
सफेद कफ़न का इंतजाम भी
तुम क्या खुद करके जाओगे?
क्या ऐसे तुम जीवन में शांति का अहसास पाओगे? 














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