जीवन में
बिखरने से बहना ही अच्छा होता है सदा
ढलाव पर बहना और
निष्चित गंतव्य तक पहुँच जाना,
चाह, प्यास, व गड्ढे भरते चले जाना अनजानी राह के।
शुरू से अंत तक -
एक प्राकृतिक प्रक्रिया के तहत
और फिर एकत्रित हो जाना सहमति में।
मगर, बिखरने से कुछ नहीं सजता,
तनाव ही हाथ आता है जीवन भर का।
निरुद्देश्य, बेवजह टूट-टूट कर गिरना,
बिल्कुल भी न संभलना न समझना हालातों को
और फट ही जाना
कभी न जुड़ने के लिये।
बिखरने से बहना ही अच्छा होता है सदा
ढलाव पर बहना और
निष्चित गंतव्य तक पहुँच जाना,
चाह, प्यास, व गड्ढे भरते चले जाना अनजानी राह के।
शुरू से अंत तक -
एक प्राकृतिक प्रक्रिया के तहत
और फिर एकत्रित हो जाना सहमति में।
मगर, बिखरने से कुछ नहीं सजता,
तनाव ही हाथ आता है जीवन भर का।
निरुद्देश्य, बेवजह टूट-टूट कर गिरना,
बिल्कुल भी न संभलना न समझना हालातों को
और फट ही जाना
कभी न जुड़ने के लिये।
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