Wednesday, July 29, 2015

बहते-बिखरते

जीवन में 
बिखरने से बहना ही अच्छा होता है सदा 
ढलाव पर बहना और 
निष्चित गंतव्य तक पहुँच जाना,
चाह, प्यास, व गड्ढे भरते चले जाना अनजानी राह के। 
शुरू से अंत तक -
एक प्राकृतिक प्रक्रिया के तहत 
और फिर एकत्रित हो जाना सहमति में। 
मगर, बिखरने से कुछ नहीं सजता,
तनाव ही हाथ आता है जीवन भर का। 
निरुद्देश्य, बेवजह टूट-टूट कर गिरना,
बिल्कुल भी न संभलना न समझना हालातों को
और फट ही जाना 
कभी न जुड़ने के लिये।  

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