अगर क्रोध एक वृक्ष है तो
घृणा उससे पोषित होती एक अमरबेल....
ह्रदय में,
क्रोध वृक्ष के पनपकर ऊँचे-उठते बढ़ते ही,
घृणा भी फैलती है सब और उससे लिपटती-चिपटती
उसी का ही सब रस ले-लेकर,
उत्पात-हाहाकार मचाती,
समूचे तन में, जीवन भर में,
सबकुछ जलाती भस्मासुर-सी।
अगर बचना हो उससे,
तो क्रोध को कभी वक़्त मत दो,
अमरबेल को भी मत छाँटो,
प्रेम के एक भरपूर प्रहार से
क्रोध-घृणा को समूल ही काटो।
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