Monday, July 27, 2015

क्रोध का शमन


अगर क्रोध एक वृक्ष है तो 
घृणा उससे पोषित होती एक अमरबेल.... 
ह्रदय में, 
क्रोध वृक्ष के पनपकर ऊँचे-उठते बढ़ते ही, 
घृणा भी फैलती है सब और उससे लिपटती-चिपटती 
उसी का ही सब रस ले-लेकर,
उत्पात-हाहाकार मचाती, 
समूचे तन में, जीवन भर में,
सबकुछ जलाती भस्मासुर-सी। 

अगर बचना हो उससे, 
तो क्रोध को कभी वक़्त मत दो,
अमरबेल को भी मत छाँटो,
प्रेम के एक भरपूर प्रहार से 
क्रोध-घृणा को समूल ही काटो। 

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