Wednesday, July 29, 2015

चिंगारी की चाह

अपने नेताओं और आकाओं के कहने पर 
जो बम तुमने बनाये थे 
पड़ोसी के घर को उड़ाने के लिये 
वे फटने लगे हैं एक-एक करके अब 
तुम्हारे ही घर में तादाद से ज्यादा होकर,
मगर उनसे जख्मी होते तुम 
कतई शर्मिंदा नहीं हो अपनी इस घिनौनी करतूत पर 
और हर बार इसे तुम महज एक हादसा बताते हो या फिर 
खिसियाकर अपने को बचाने आये पड़ोसी पर ही 
इसकी तोहमत लगाते हो। 
यह सिलसिला आखिर कब तक चलेगा?
और ऐसे तुम्हें कौन तुम्हें बचाने आयेगा?
बेगानी आग में अपने हाथ या 
अपना दामन बार-बार जलायेगा?
हालात तो चीख-चीख कर कह ही रहे हैं,
कि इन धमाकों में तुमने तो 
एक न एक दिन उड़ ही जाना है,
अपने खोदे गड्ढे में गिर कर 
खुद ही दफ़न हो जाना है। 
अब तो, तरस खाते व दयानत दिखाते तुम्हारे पड़ोसी भी 
तुम्हारी इस नापाक नीयत से होशियार होते और 
तुमसे किनारा करते जा रहे हैं। 
क्या तुम अब भी होश में आओगे?
कि बारूदी आतंकवाद के ढ़ेर पर 
सजकर बैठे तुम्हें 
किसी चिंगारी की चाह है?


























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