पुराने के हद तक आदी हो चुके
तुम्हारे जीवन में अब नया क्या है
पूछो ज़रा अपने आप से.…।
क्या तुम कुछ नया खाते हो? नया पीते हो?
नया ओढ़ते या पहनते हो?
नये लोगों से मिलते हो?
नये बिस्तर,गाड़ी या घर का इस्तेमाल करते हो?
नयी जगह पर जाते हो कभी
नया पढ़ते-लिखते-देखते व सोचते हो?
नहीं न !
सालों-साल से
उसी पेस्ट से ब्रश करते,
उसी ब्रांड की चाय-सिगरेट पीते,
उसी मेक के साबुन से नहाते,
वही कपड़े-जूते पहनकर, उसी बेकार तरीके के /से ऑफिस जाकर,
पुराने ढर्रे से किया-कराया काम करते और
उसी पुराने घर आकर बासी बॉस की बुराई करते,
अपने तय-शुदा बिस्तर के हवाले हो जाते हो.....
क्या इससे तुम कभी अपने आप भी उकताओगे या फिर
मरने की अवस्था तक शिथिल-निस्पंद हो चुके तुम
मेरी यह कविता सुनकर ही जगोगे,
तुम्हारे कपड़ों में आग लगायें या
पूरा मरने तक ऐसे ही खत्म होते चलोगे?
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