Sunday, July 26, 2015

दूरियाँ

कौन कहता है कि 
संचार व परिवहन के साधन 
दूरियाँ घटाते, हमारा समय बचाते, एक-दूसरे के पास लाते हैं,
और हमें अपने बिछुड़ों से मिलाते हैं
वो तो होते ही हमें दूर ले जाने के लिये हैं। 
हमारे बीच बनते गलियारे, बढ़ती दूरियाँ और 
सामाजिक विषमताएँ इस बात का गवाह हैं कि 
ये दूरियाँ घटाते नहीं, बढ़ाते हैं लगातार …। 
ये हमारे पेट को रोटी और तन को कपड़े से तो ढक देते हैं किन्तु 
हमारी आत्मा और मन नंगे और प्यासे करते जाते हैं लगातार …। 
पति - पत्नी के पास रहे,
बेटा  - माँ के पास रहे,
बेटा - बाप आमने-सामने रहे, 
कि हर फूल बाग़ के पास रहे सदा
ये हर कोई चाहता है,
मगर इन शक्तियों के वश में, इनके साथ तारतम्य बैठाने की होड़ में,
हमें अपनों से दूर, बहुत दूर जाना पड़ता है,
अनगिनत मानसिक व दैहिक यातनाओं से दो-चार होना,
नजदीकियों के लिये दूर होना,
होते जाना, होते ही जाना पड़ता है। 













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