बहुत बड़ी शक्ति है
अपने विचार व्यक्त करने का अधिकार
इससे हम अपने वज़ूद के बराबर हो जाते हैं,
वरना अपने में ही सिकुड़कर,दुबककर,
धीरे-धीरे मरते ही चले जाते हैं,
एक अव्यक्त यातना में।
वैसे तो
अच्छा है,बुरा है,सही है, गलत है,
बता भर देने से कोई बदलाव होगा ही
बाहरी दुनिया या परिस्थितिओं में ये कोई जरूरी तो नहीं
मगर अपनी मानसिकता की, चेतना की प्रक्रिया पूरी होने से
हम तो अधूरे नहीं रहकर
एक सम्पूर्ण व्यक्तित्व हो जाते हैं अपने ही भीतर।
किसी के सुन भर लेने से ही
अपने भीतर नवशक्ति का स्त्रोत पाते,
संतोष पाते, चैन पाते हम
पहले से अधिक शांत, सौम्य और संतुष्ट होते ही चले जाते हैं।
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