सृष्टि
नर्तन है विराट शिव का
उनके धमक का स्पंदन ही है धरा पर,
हममें खिला जीवन बनकर …।
ज्यों-ज्यों उग्र होती उनकी नृत्य मुद्रायें
सृष्टि में उपजे दावानल तो
आवेशित अन्तर्मन भी दहलता उसके संग-संग।
और, मदमस्त शिथिल होती चेष्टाओं में
खिली सृष्टी, चहका तन-मन उसके संग-संग।
शिव नर्तन से
पल-पल,रोयाँ-रोयाँ,कण-कण जुड़े हम
करते हैं महज
उनके नृत्य का वर्धन।
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