Wednesday, July 15, 2015

खिड़की एक आशा


कमरे की 
बंद खिड़की खोलते ही 
भाग कर अंदर आती है -
हवा,रोशनी,आकाश,पेड़,आवाजें,फूलों की सुगंध,
नये दृश्य व नयी सोच और भी न जाने क्या-क्या?

सीलन भरी, घुटन भरी इस जिंदगी में ताजी हवा लाती है-
पुलक, उत्साह,आशायें, उम्मीदें, सपने,
कुछ पराये, कुछ अपने।
मगर बहुत कुछ 
बीता हुआ तुम्हारे भी चलने,बिसारने से बीतेगा जल्दी से 
वरना लिपटा रहेगा तुम्हारे वजूद से पुराने-काले कबंल-सा या 
जंग खायी लोहे की बेड़ियों से  लिपटा रहेगा तुम्हारा तन-मन 
निकल/छूट नहीं पायेगा काल के भूत से,
जो मथता-कोंचता खींचेगा तुम्हें दुर्दिन की यादों में,
बीती कंदराओं में, भयावह सपनों में
निकलो इससे, हिलो, उठो, खोलो,
अपने ह्रदय की बंद पड़ी खिड़कियों को 
और स्वागत करो, आने दो नये को भीतर 
खिड़की से मन में 
उल्लास को, उजास को।  














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