नहीं
अब यह तुम नहीं हो
मुक्क्मल भय ने ही ले रखा है
इंसान का आकार।
यह तुम्हारे पिता नहीं
यह तो बड़े घरेलु भय के हैं सरदार
जो तुम्हें जीवन भर
समाज के अदब और अपने रुतबे के नाम पर डराते हैं,
या यूँ कहिये तुम्हें पीट-पीट कर समाज का
कामयाब गधा बनाते हैं।
यह गुरु,शिक्षक हैं स्कूल के
जो डंडे से तुम्हारे दिमाग में नई-पुरानी शिक्षा घुसाते हैं
और तुम्हें,
रट्टू तोता,कामकाजी हजुरिया या औद्योगिक पिट्ठू बनाते हैं।
नहीं यह पंडित, पुजारी या धर्मगुरु नहीं,
पाप-पुण्य,धर्म-कर्म का फैला जंजाल है
जो ईश्वर के नाम पर
तुम्हें बरगलाता है,
तुमसे अजीबो-गरीब व्यवहार करवाता है और
जिस राह को कभी वह भी नहीं जानता
उस राह पर बड़े विश्वास के साथ
तुम्हें ले कर जाता है, और तो और
भगवान के नाम पर मंदिर के इर्द-गिर्द ही नहीं
तुम्हें तुम्हारे ही अंदर व बाहर तक के कई चककर कटवाता है।
और इसे सरकार समझने की गलती मत करना
जो तुम्हें अनुशासन व आजादी के नाम पर डराती है
और तुम्ही पर तरह-तरह के जुर्माने रसीद कर
तुम्हारे गुनाहों को माफ़ करती जाती है।
वस्तुत ये सब तुम्हारी ली और भोगी हुईं
सुविधाओं के दाम हैं
जो तुम्हें तरह-तरह का भय दिखाकर तुमसे
निचोड़े जाते हैं।
वरना जियाले इन्सान भी कभी भय खाते हैं,
वे तो जीते हैं और सीधा मर जाते हैं।
ये तो डरपोक इंसान ही है जो सदा समाज मेँ पाये जाते हैं।
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