Tuesday, July 14, 2015

बच्चे जब बड़े हो जाते हैं


यह सच है 
बच्चे जब 
कंधों तक बड़े हो जाते हैं 
हम फलों-फूलों के भार से झुक-झुक जाते, 
उन्हीं के दुख हम दुखते, 
उन्हीं की खुशियाँ खुश्तें हैं,
वे ही हमारे लिये सब कुछ हो जाते, रब हो जाते हैं। 
मगर क्या बच्चे भी हमें 
इतना ही चाहते हैं, हमारे इतने ही काम आते हैं?
नहीं !
पता नहीं ऐसा क्यों नहीं हो पाता।
बच्चे अपने बच्चोँ पर वारी जाते हैं, 
अधिक प्यार-स्नेह दे पाते हैं, 
अपने माँ-बाप से सगापन नहीं निभा पाते जिनका वे खाते हैं। 
प्रेम की, बलिदान की भी 
कैसी अनूठी-स्वार्थी अजीबोगरीब नींव व परंपरायें हैं -
हर बार इस वाक्या में 
माँ-बाप तो सूने के सूने ही रह जाते हैं,
अकेले पड़ जाते हैं। 

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