जब तब
अपने भीतर के बिखराव को बाहर क्यों निकालते हो
और अपनी खिसियाहट व गुस्सा
कमजोर,मासूम,निरपराध बच्चों और बीवी पर क्यों उतारते हो।
तुम्हें ये सौगात ईश्वर ने
पालने व संभालने के लिये दी है,
ये वे फूल और सुगंध है जो तुम्हें
तुम्हारे पुण्यों से प्राप्त हुये हैं और इस
नेमत को तुम्हें ईश्वर की धरोहर मानना है,
अपना बाज़ारू गुस्सा जब-तब इन पर नहीं उतारना है।
सोचो विवशता उनकी जिनके पास
ये सौगातें नहीं हैं - वफादार बीवी या बच्चे नहीं हैं।
वे इन्हें पाने के लिये किस कदर ललकते हैं और
किस-किस मंदिर की चौखट पर माथा नहीं रगड़ते हैं,
मन्नते मांगते,सजदा करते हैं।
इतिहास गवाह है कि अधिकांश युद्ध तो
इस्त्री की प्राप्ति, संतान की सलामती के लिये ही हुये हैं।
ऐसे में अपनी असफलता को उनपर उतारना,
या अपनी दुश्वारियाँ उनपर लादना,
अपनी जिम्मेवारियों से भागना नहीं तो और क्या है?
तुम ये क्यों नहीं समझते
कि आगे जीवन में यही तुम्हारे काम आयेंगे।
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