Friday, July 17, 2015

हमारे श्वास



तुम्हारे जीवन पर्यन्त 
और अशेष होने पर भी 
तुम्हारी देह के अवशिष्टों व अवशेषों को 
अनेक प्रकार से निस्तारित करता 
तुम्हारा यह पूर्वज-देवता-स्वरूप वृक्ष 
अवश्य ही
तुम्हारी आत्मा को भी अपने भीतर संभालता है 
सृष्टि से नये जीव के अह्ह्वान आने तक। 

हमारी कामनायें हीं 
धरती हैं जब कोई नवजात देह 
तो वह ही वृक्ष से निकलकर - श्वास बनकर,प्राण बनकर 
उसमें समाता है आत्मास्वरूप सजने को। 

उससे पूर्व वह समाहित है सदा वृक्षों में 
हमारे पूर्वजों के रूप में/हमारी कामना की इंतजार में 
पुनः-पुनः लौट-लौट कर आने को 
हमारे बालकों की सांस बन जाने को।  



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