हममें से
बहुत सारे यह नहीं जानते कि
हममें ही ईश्वर का वास है
और हमारी ली गई एक-एक सांस
ईश्वर का ही उछवास है
लेकिन जब हम अपने को दो नहीं एक मानें
तभी वह हमें नज़र आता है
वरना देह और आत्मा के द्वन्द में बंटकर
विचारों की कंदराओं में ही लोप हो जाता है।
मानों तो वह मानने के लिये है
विचारने के लिये नहीं
वरना वह नहीं, कहीं नहीं, है ही नहीं।
वरना वह नहीं, कहीं नहीं, है ही नहीं।
No comments:
Post a Comment