Tuesday, June 16, 2015

अनाम यात्रा



जीवन  है जैसे 
पहाड़ी यात्रा का सफर 
चढ़ते जाना 
ऊँचे-ऊँचे और ऊँचे 
जहां पल प्रति पल 
होते जाते हैं हम अपनों से दूर और दूर..... 
छोटे और बौने होते सब..... 
सभी को ऊपर कोई चोटी पर बुला रहा है.… 
हमसाया ही है कोई ऊपर हमारा
चोटी पर पहुंचना बिल्कुल भी आसान नहीं है पर 
हर कोई दौड़ता-हांफता 
इसी उम्मीद से चढा जा रहा है कि 
उसे ऊपर ही मिलेगा आराम 
जहां करना नहीं होगा कोई काम 
बस निश्चिन्त- निश्चिन्त आराम। 
ऊपर बादलों से छूती हुई चोटी 
मानो चोटी पर पहुंचकर 
एक पांव बढ़ाया 
और आकाश में ग़ुम हो जाना है,
हल्के हो जाना है बादलों की तरह
बादलों का ही हिस्सा होकर 
बादलों की तरह उड़ना भी है छिन्न -भिन्न होकर और 
एक  भी रहना है.… 
टूटना है... जुड़ना है.. जुड़ना है... टूटना है..... 
बरसना है... बादल भी होना है 
फिर फिर धरती पर आने के लिये 
आत्मा भी होना है, देह  भी  धरना है।      

















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