जितना बड़ा पूरा
आकाश व प्रकाश बाहर है
उससे भी अधिक
आकाश व प्रकाश का फैलाव
हमारे भीतर भी होता ही रहता है श्रण-श्रण --
ऊर्जा रश्मियों के अनगिनत विस्फोट होते ही जाते हैं--
लेकिन हम इन्हें महसूस नहीं कर पाते
क्योंकि हम कभी अपनी भीतरी यात्रा पर नहीं जाते हैं।
भीतर भी हमारे एक भरा-पूरा जहान है - खेत व खलियान हैं
विचारों के बागान हैं।
जिन्हें हम सीँच नहीं पाते हैं
बाहरी भाग-दौड़ में लगे हमको
अपने को जानने-समझने में ही सालों-साल लग जाते हैं,
न ही हम इन्हें इनके मित्र -
पुस्तकों व कला का संसार ही दे पाते हैं।
इसलिय हम इन्हें और ये हमें सूखा ही छोड़ जाते हैं।
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