Tuesday, June 16, 2015

सूखे हम



जितना बड़ा पूरा 
आकाश व प्रकाश बाहर है 
उससे भी अधिक 
आकाश व प्रकाश का फैलाव
हमारे भीतर भी होता ही रहता है श्रण-श्रण --
ऊर्जा रश्मियों के अनगिनत विस्फोट होते ही जाते हैं--  
लेकिन हम इन्हें महसूस नहीं कर पाते 
क्योंकि हम कभी अपनी भीतरी यात्रा पर नहीं जाते हैं

भीतर भी हमारे एक भरा-पूरा जहान है - खेत व खलियान हैं 
विचारों के बागान हैं। 
जिन्हें हम सीँच नहीं पाते हैं 
बाहरी भाग-दौड़ में लगे हमको 
अपने को जानने-समझने में ही सालों-साल लग जाते हैं,
न ही हम इन्हें इनके मित्र - 
पुस्तकों व कला का संसार ही दे पाते हैं।  
इसलिय हम इन्हें और ये हमें सूखा ही छोड़ जाते हैं।    







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