काली अंधेरी रात के बाद
आया सुबह का उजाला ही हमें बहुत भाता है,
काली लम्बी सड़क की यात्रा करके ही
यात्री घर आकर सकून पाता है, और
चाक व खड़िया से लिखे जाते शब्द भी
हमें तभी समझ आते हैं जब वे
काली स्लेट या ब्लैकबोर्ड पर लिखे जाते हैं।
ब्रमाण्ड की यात्रा के शुरू में भी
जब कुछ न था - शब्द , ध्वनि या प्रकाश
मानो काला अंधकार तो वहाँ तब भी था।
फिर पता नहीं क्यों?
अवचेतन में छिपे अंधकार के भय से
हम छूट नहीं पाते हैं और
अंधकार से, काले रंग से हम इतना घबराते हैं कि
अँधेरे या काले के नाम से हम
बड़ा संकुचित हो जाते हैं, वैमनस्य से भर जाते हैं,
उसे हम खुले मस्तिष्क से अपना नहीं पाते
इसलिये ही हम अँधेरे से, काले से भय खाते हैं।
उसे कभी सही नहीं समझते और
न उसे अपना सहायक रंग समझकर उससे दोस्ती ही निभाते हैं।
अनजाने में ही
हमारे बचपन से
हमारे भीतर अंधेरे का डर भर दिया गया है,
वे सारी नकारत्मक बातें कि
अँधेरा बुरा है,
अँधेरा अशुभ है,
अँधेरा नींद है,
अँधेरा असुर है,
अँधेरा मृत्यु है,
अँधेरा यम है,
अँधेरा उजाले के विपरीत है....
इससे डरो,
इससे बचो,
इससे भागो....
और जितना हो सके इसे त्यागो।
मगर क्या यह सब सच है?
कोई ये क्यों नहीं कहता कि काला भी एक रंग है
जो और रंगों की तरह ही
अनेक वस्तुओं-पदार्थों में रचा बसा होता है -
अग्नि में,
आँख की पुतली में,
ये ही काला रंग जूतों में, कोट में, अचकन में, नकाब में......
हमारे बालों में, सब जगह,
अनेक रंगों के ठीक नीचे, ठीक बीच में भी तो
कहीं काला ही रखा होता है।
काला भी हमारे लिये
सफेद की तरह आम है,
काला ही हमारे लिये नींद व रात का आराम है।
रात में भी हम, सपनो में भी हम
अपने लिये,अपने साथ बहुत कुछ करते हैं -
रात में ही हम अपनी थकान को घुलाते हैं और
दिन भर की परेशानियों की पोटली हम अँधेरे में हीं तो छोड़ आते हैं,
दिन के जख्म भी तो हमारे नींद में,
अँधेरे में ही भरते हैं।
ये अँधेरी रात ही है,
जो हमारे लिये सुबह के उजाले लाती है,
और हमारे गुनाहों को लील जाती है।
फिर भला
हम इससे दूरी रखकर क्योंकर बचना चाहते हैं ?
मिलें काले से भी हम खुले मस्तिष्क से,
अँधेरे में भी घूमें हम ऐसे, जैसे घूमते हैं उजाले में तो
वहाँ भी हमें काफी कुछ नजर आयेगा,
बिना उजाले के भी
दिमाग बहुत कुछ देखने-समझने में कामयाब हो जायेगा।
और अवगुण किसमें नहीं हो सकते,
इसे दूसरे रंगों की तरह सहजता से लेने पर
तुम्हें इसके गुण ही गुण नज़र आयेंगे
और रोशनियों के पीछे अंधाधुंध भागते संसार में
एक बार फिर श्याम मुस्कुरायँगे।
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