अब बाहर नहीं
भीतर ही होने लगी है आवाज
कि कोई रुक -रुक कर
दरवाज़े की सांकल बजाता और मुझे
उठो जागो, उठो जागो की आवाज लगाता है.....
आधा जग चुका सोचता हूँ कि चैतन्य भी हुआ तो
क्या करूँगा मैं ? किससे बातें करूंगा ?
किससे बांटूंगा अपने विचार ?
यहाँ तो सब गहरी नींद में सोये हैं,
अपने-अपने सपनो मैं खोये हैं
भला मेरे लिए कौन अपनी नींद, अपना सपना, अपना बिस्तर
छोड़कर आयेगा। बड़ा मुश्किल है।
अब पहले तो किसी एक को उठना होगा,
उसे सुबह का उगता सूरज दिखाना होगा।
जब एक दिया जल जायेगा तोा ओरों को ,
फिर धीरे धीरे धीरे ……
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