Wednesday, June 10, 2015

उद्देश्य



आखिर क्या है ? क्यों है कि ?
मैं, तुम या वह 
हम सब इस आत्मा की मुक्ति ही चाहते हैं 
और इस देह व धरा को भोगने के बाद 
यहाँ पुनः पुनः नहीं आना चाहते हैं

ये तो विधि का विधान है कि 
देह धरे बिना कोई आत्मा हो या परमात्मा 
नभ से इस भूमि पर नहीं आ पाती है,
और मानो आती भी तो 
महाशून्य से शून्य की यात्रा में 
उसका प्रारब्ध क्या है?

रुके रहना - बिना पहचान के यत्र-तत्र लहराते रहना।
भला किस काम का?

एक जीवन, 
एक नाम तो उसे भी चाहिये 
इस धरती पर धन्य-धन्य हो  जाने  के  लिये।  










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