Friday, June 12, 2015

समन्वय



कितने भी लगालो पूर्वानुमान 
कितनी भी योजनायें बना लो 
मगर कभी भी 
सब कुछ वैसा नहीं होता 
जिसके लिये रहे हो, किया हो 
एक अरसे से तुमने अपने को तैयार ,
तुम्हारा सही व गल्त भी महत्वहीन हो जाता है वक़्त के आने पर। 
होता वही है
जो वक्त को, प्रकृति भाता है,
अपना तो किनारे पर ही छूट जाता है।  
अगर वक्त ने चाहा तो इसी षण  
प्रकृति हित में जायेंगे तुम्हारे प्राण 
इसलिए अपनी व्यतिगत इच्छाओं को त्यागकर 
इस तथ्य को आत्मा में बैठा लो कि -
प्रकृति बड़ी है, तुम नहीं 
जो हो जाये वही उचित था सब के लिये, तुम्हारे  लिये  भी  
ऐसी भावना और विश्वास पालो और  
अपनी इच्छाऐं व जरूरतों का समन्वय प्रकृति के हिसाब से ढालो। 






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