Saturday, June 13, 2015

विचार



जब तब हम संग्रह करते जाते हैं 
फिर वे चाहे संबंधों का हो या सामान का 
तब-तब मृत्यु का भय बढता ही जाता है, याकि 
त्याग से हम मृत्यु के भय को जीत सकते हैं
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परिवर्तन से ही वक़्त का पता चलता है। 

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वक़्त  जीवंतता पर अधिक असर करता है। 

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जो कुछ भी तुम्हारे पूर्वजों ने किया है 
वह तुम्हारी देह,आत्मा और  संस्कार में रचा-बसा है
सावधान ! अब जो कुछ भी तुम करने जा रहे हो 
तुम्हारी सन्तानों में आयेगा अवश्य।
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काल (वक़्त ) ने सब जाया (जन्मा ) है,
और किसी ने भी नहीं।             
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जिस तरह पानी में 
बर्फ का टुकड़ा घुल जाता है 
उसी तरह हम वक़्त में 
घुले जाते हैं। 

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हम धरती से  ऐसे जुड़े हैं 
जैसे बालक अपनी माँ से 
फिर भला इसे छोड़कर कहाँ जायेंगे 
इसी धरती में उपजे हैं सब 
एक दिन इसी में समायेंगे।             
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नयी उंचाईंयों के लिये तो 
नये रास्ते ही खोजने पड़ते हैं। 
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मानक से अधिक हो चुकी 
उदासियों व थकानों को 
मांसपेशियों से एकत्रित कर 
रक्त जब मस्तिष्क में पहुंचाता है 
तो शरीर नींद में चला जाता है।  
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काम (श्रम ) की नाभि में 

जो स्वर्णमजूषा है में 
नाम छुपा हुआ है। 
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कोई भी बीज वनस्पति या प्राणी का 
मनोनुकूल परिस्थितियाँ पाकर ही 
फुटन लेता है, और यही उसका भाग्य भी है। 
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रोज अपनी धरती को बुहारते हो,
रोज अपनी देह को भी बुहारते हो,
रोज अपने भीतर भी बुहारो 
और फिर उसे जोर से पुकारो। 
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बताया हुआ, कहा हुआ ही 
अधिक सुख देता है। 
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कोई भी विचार 

कभी सम्पूर्ण नहीं होता। 
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तुम मुझसे आगे चलते हुए ही 
मुझे पुकारना क्योंकि पीछे 
मुड़कर देखने में मुझे तकलीफ होती है। 
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योग्यता व अधिकार के बिना 
हठपूर्वक पाना ही पाप है। 

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जब आप भीड़ में तेजी से बढ़ना चाहेंगे 
तो टकरेंगे तो जरूर ही। 
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अनिर्णय व अकर्मणता ही 
अव्यवस्था का कारण होते हैं। 
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रास्ते साफ कभी नहीं होते 
उनको अपने लिये साफ करना होता है। 
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आपके बनाये रास्तों पर तो 
आपकी संतान तक नहीं चलती। 
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सुविधाएँ व साधन सदैव कम है होते हैं। 






      
        

















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