जब तब हम संग्रह करते जाते हैं
फिर वे चाहे संबंधों का हो या सामान का
तब-तब मृत्यु का भय बढता ही जाता है, याकि
त्याग से हम मृत्यु के भय को जीत सकते हैं।
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परिवर्तन से ही वक़्त का पता चलता है।
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वक़्त जीवंतता पर अधिक असर करता है।
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जो कुछ भी तुम्हारे पूर्वजों ने किया है
वह तुम्हारी देह,आत्मा और संस्कार में रचा-बसा है।
सावधान ! अब जो कुछ भी तुम करने जा रहे हो
तुम्हारी सन्तानों में आयेगा अवश्य।
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काल (वक़्त ) ने सब जाया (जन्मा ) है,
और किसी ने भी नहीं।
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जिस तरह पानी में
बर्फ का टुकड़ा घुल जाता है
उसी तरह हम वक़्त में
घुले जाते हैं।
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हम धरती से ऐसे जुड़े हैं
जैसे बालक अपनी माँ से
फिर भला इसे छोड़कर कहाँ जायेंगे
इसी धरती में उपजे हैं सब
एक दिन इसी में समायेंगे।
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नयी उंचाईंयों के लिये तो
नये रास्ते ही खोजने पड़ते हैं।
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मानक से अधिक हो चुकी
उदासियों व थकानों को
मांसपेशियों से एकत्रित कर
रक्त जब मस्तिष्क में पहुंचाता है
तो शरीर नींद में चला जाता है।
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काम (श्रम ) की नाभि में
जो स्वर्णमजूषा है में
नाम छुपा हुआ है।
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कोई भी बीज वनस्पति या प्राणी का
मनोनुकूल परिस्थितियाँ पाकर ही
फुटन लेता है, और यही उसका भाग्य भी है।
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रोज अपनी धरती को बुहारते हो,
रोज अपनी देह को भी बुहारते हो,
रोज अपने भीतर भी बुहारो
और फिर उसे जोर से पुकारो।
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बताया हुआ, कहा हुआ ही
अधिक सुख देता है।
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कोई भी विचार
कभी सम्पूर्ण नहीं होता।
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तुम मुझसे आगे चलते हुए ही
मुझे पुकारना क्योंकि पीछे
मुड़कर देखने में मुझे तकलीफ होती है।
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योग्यता व अधिकार के बिना
हठपूर्वक पाना ही पाप है।
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जब आप भीड़ में तेजी से बढ़ना चाहेंगे
तो टकरेंगे तो जरूर ही।
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अनिर्णय व अकर्मणता ही
अव्यवस्था का कारण होते हैं।
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रास्ते साफ कभी नहीं होते
उनको अपने लिये साफ करना होता है।
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आपके बनाये रास्तों पर तो
आपकी संतान तक नहीं चलती।
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सुविधाएँ व साधन सदैव कम है होते हैं।
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