Sunday, June 28, 2015

प्रायष्चित



तुमने 
तनिक थमकर,
रुककर या ठहरक
अपने में, अपने आपको कभी देखा है?
रुककर नहीं तो जीवन के प्रवाह में बहते हुए,
काम करते हुए,व्यवहार करते हुए 
तो बिल्कुल भी नहीं देखा होगा?
कभी देखा भी होगा तो 
भीतर इतना अंधेरा था कि 
कुछ दिखायी नहीं दिया, हैं न!
और भीतर के अंधेरे 
तुम्हें बहुत डराते भी हैं,
तुम्हारे पापों की अस्थियों से 
तुम्हारा सामना भी कराते हैं। 
इसलिए तुमने जीवन में रुकना और 
अपने अंदर जाने का प्रयास ही छोड़ दिया और 
तुम बाहर-बाहर भागने लगे 
अपने से छिप-छिप कर या फिर 
तुम्हारे बाहर बहुत उजाला है और अंदर-भीतर  घना अँधेरा
जिसे तुम्हें हटाना ही नहीं आता। 
मगर कुछ पल भी 
तुम ऐसा कर लेते तो 
अपने आपको, आ चुकी व आने वाली 
अनेक मुश्किलों से बचा सकते थे,
और रुककर थमकर अँधेरे का सामना करके 
तुम अपनी कालिमा पर विजय पा सकते थे। 

चाहो तो अब भी 
अपने पापों की अस्थियों को प्रायष्चित की 
गंगा में बहा सकते हो और 
अपने भीतर साधना का उजाला ला सकते हो। 



















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