मेरा नाम
एक ऐसा शब्द बीज है
जो मुझमें रोपा गया
मेरे इस धरती पर उतरने के बाद
और अब जो मेरे अस्तित्व का हिस्सा बना
चिपका दिया गया है मेरे पर - न छूटने के लिये ।
वह मेरे से भी कुछ अधिक
फलता-फूलता है।
और वहाँ-वहाँ भी मिलता है मुझे
जहाँ मैं नहीं भी होता,होना चाहता,हो सकता।
स्वार्थों की खोह में भी
वह मुझसे अधिक अनाम है और
दूसरे तरीके से बदनाम है।
मुझे मालूम है कि
वह मेरा पीछा नहीं छोड़ेगा
प्रेत बनकर टहलेगा कागजों में, मेरे गुजरने के बाद।
मगर वह मेरा नाम है,
तो मैं तो
उसके साथ हूँगा ही
चाहूँ या न चाहूँ।
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