भयभीत होकर मैं
नींद से उठकर बाहर भागा
और गॉँव के एक-एक घर की सांकल बजाकर मैंने कहा
कि मुझे मालूम है कि वह आता है,
वह हर घर में आयेगा
और बारी-बारी सबको ले जायेगा अपने साथ
इसलिये उठो ! जागो ! बाहर निकलो !
गाँव के बीचों बीच कोई लोबान जलाओ
या उससे प्राथना भरा, याचना भरा कोई गीत गाओ।
मगर कोई भी,
एक भी घर से नहीं निकला बाहर … .
फिर मैं न समझी में
हांफता हुआ गॉँव के पुराने पेड़ के पास आया
कि सुनो !
तुम तो यहाँ लम्बे अरसे से हो
देखा होगा तुमने सब कुछ अपनी आँखों से कई बार।
पेड़ बोला - हाँ वह आता है।
हर घर में आता है
और एक-एक कर साथ भी ले जाता है अपनो को
मगर यहाँ कोई भयभीत नहीं है
और न देगा कोई तुम्हारा साथ
क्योंकि मुर्दों को कोई भय नहीं होता, अहसास नहीं होता
तुम पहले इन्हैं जगाओ तो
फिर तो पाओगे इनका साथ।
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