Friday, June 5, 2015

असली डर



भयभीत होकर मैं 
नींद से उठकर बाहर भागा 
और गॉँव के एक-एक घर की सांकल बजाकर मैंने कहा 
कि मुझे मालूम है कि वह आता है,
वह हर घर में आयेगा 
और बारी-बारी सबको ले जायेगा अपने साथ 
इसलिये उठो ! जागो ! बाहर निकलो !
गाँव के बीचों बीच कोई लोबान जलाओ 
या उससे प्राथना भरा, याचना भरा कोई गीत गाओ। 
मगर कोई भी,
एक भी घर से नहीं निकला बाहर … . 

फिर मैं न समझी में 
हांफता हुआ गॉँव के पुराने पेड़ के पास आया 
कि सुनो !
तुम तो यहाँ लम्बे अरसे से हो 
देखा होगा तुमने सब कुछ अपनी आँखों से कई बार। 

पेड़ बोला - हाँ वह आता है। 
हर घर में आता है 
और एक-एक कर साथ भी ले जाता है अपनो को 
मगर यहाँ कोई भयभीत नहीं है 
और न देगा कोई तुम्हारा साथ 
क्योंकि मुर्दों को कोई भय नहीं होता, अहसास नहीं होता 
तुम पहले इन्हैं जगाओ तो 
फिर  तो पाओगे इनका साथ।        

















No comments:

Post a Comment