काली अंधेरी रात-सी
नींद ही उतरती है आँखों में
और अपना, पराया, ये समूचा जहान ही
विस्मृत हो जाता है कुछ वक्त के लिये ... .,
पहले व्यक्ति खोता है उजाला
फिर होश और आगे-आगे
दंभ में व्यक्ति गिरता ही जाता है पराई काली गार में …।
होश आने पर
शालीनता व ताजगी लिए
तरोताजा हो
उठ खड़ा होता है
अपनेपन का
आकाश लिये ,प्रकाश लिये।
नींद ही उतरती है आँखों में
और अपना, पराया, ये समूचा जहान ही
विस्मृत हो जाता है कुछ वक्त के लिये ... .,
पहले व्यक्ति खोता है उजाला
फिर होश और आगे-आगे
दंभ में व्यक्ति गिरता ही जाता है पराई काली गार में …।
होश आने पर
शालीनता व ताजगी लिए
तरोताजा हो
उठ खड़ा होता है
अपनेपन का
आकाश लिये ,प्रकाश लिये।
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