माना कि
एक दूसरे से
हम रूबरू मिल नहीं पाते लंबे अर्से तक, ऐ मेरे दोस्त !
मगर अच्छी बात तो यह है कि
हम तहे दिल से मिलना तो चाहते हैं।
और ये, हमारे बीच की दूरियाँ किसी खटास ने नहीं पैदा कीं,
हमारी मजबूरियों से उपजी हैं।
आज हालातों के दो विपरीत सिरों पर अटके हम
बस एक दूसरे को लालसा व चाहत से ही निहार सकते हैं,
और अपने-अपने नौकरियों के खम्भों पर चढ़े हम उतर नहीं पाते हैं।
अपने स्तम्भों से स्तब्ध हुए हम
बाल कृष्ण की तरह अपनी मुश्किल की भारी औखली को घसीट कर
एक दूसरे के समीप नहीं ला पाते हैं।
इस लिए एक दूसरे से मिल नहीं पाते हैं और
बैगानो-सा जीवन बिताते हैं।
अब तो
व्यवस्था की बेड़ियों से बँधी हमारी इस प्रह्लाद देह को
मजबूरियों के खम्भो से छुड़ाने के लिए
आत्मारूपी विष्णु ही लेगा नरसिंह अवतार
जो सामाजिक नियमों को पूरा करता,
राजद्वार के बीच रखकर
इनको हिरणक्यश्यप की तरह चीर देगा सरेआम
और फिर हमारा मिलना होता रहेगा बार-बार।
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