व्यक्ति के व्यतिगत
इतिहास को जानने से हमें
यही तो पता लगता है न
कि वह कहाँ से आया है, किसका जाया (पैदा किया) है,
किस नस्ल व अक्ल का है,
कितना जुझारू व अड़ियल है,
वह किस-किस को हरायेगा और कितना कमायेगा,
समाज व देश को फायदा करता हुआ कहाँ तक आगे जायेगा,
कितना बोझा लादें, कितने का दांव लगायें ?
ऐसा करके हम उसके
मन का, तन का, मस्तिष्क का, आत्मा का
आकलन-मूल्यांकन ही तो करते हैं -
एक पारखी एक जौहरी की तरह,
बाजार में बिकती कोई धातु की ठोस वस्तु,
दुधारू गाय या बोझा ढोने वाला गधा मानकर।
जैसे,जिसे तपाकर,गलाकर,कुछ खिलाकर या निवेश कर
कितना कमायेंगे व इसके साथ रिश्ते बनाकर हम घाटा तो नहीं खायेंगे।यह पहले से जान लेना जरूरी हो हमारे लिये एक लालची व्यापारी की तरह, उससे संबंध बनाने से पहले।
अब खोटा सिक्का भला कौन संभालता है,
यह ईश्वर का घर नहीं रहा, बाजारू दुनिया है,
यहाँ कौन किसको पालता है,
और बात को कितना भी छुपा-घुमा लो
आखिर में तो आदमी को पैसा ही पालता है।
इतिहास को जानने से हमें
यही तो पता लगता है न
कि वह कहाँ से आया है, किसका जाया (पैदा किया) है,
किस नस्ल व अक्ल का है,
कितना जुझारू व अड़ियल है,
वह किस-किस को हरायेगा और कितना कमायेगा,
समाज व देश को फायदा करता हुआ कहाँ तक आगे जायेगा,
कितना बोझा लादें, कितने का दांव लगायें ?
ऐसा करके हम उसके
मन का, तन का, मस्तिष्क का, आत्मा का
आकलन-मूल्यांकन ही तो करते हैं -
एक पारखी एक जौहरी की तरह,
बाजार में बिकती कोई धातु की ठोस वस्तु,
दुधारू गाय या बोझा ढोने वाला गधा मानकर।
जैसे,जिसे तपाकर,गलाकर,कुछ खिलाकर या निवेश कर
कितना कमायेंगे व इसके साथ रिश्ते बनाकर हम घाटा तो नहीं खायेंगे।यह पहले से जान लेना जरूरी हो हमारे लिये एक लालची व्यापारी की तरह, उससे संबंध बनाने से पहले।
अब खोटा सिक्का भला कौन संभालता है,
यह ईश्वर का घर नहीं रहा, बाजारू दुनिया है,
यहाँ कौन किसको पालता है,
और बात को कितना भी छुपा-घुमा लो
आखिर में तो आदमी को पैसा ही पालता है।
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