Friday, August 21, 2015

शून्य एक महाकाल

शून्य, 
एक छोटी-सी जीरो या गोल दायरा जब फैलता है
 तो बड़ा होकर पृथ्वी हो जाता है,
और आगे बढ़कर घेर लेता है समूचे ब्रमांड का आकार। 
जब चाहे बड़ी से बड़ी संख्या बना देता है 
किसी एक को, उसके साथ लगते जाने के बाद
और छोटा होकर दशमलव जब बन लगता है तो 
एक से भी लघुतम कर देता है अपने बाद आने वाले हरेक को। 

यानिकि इसके होने से, अधिक होने से,
छोटा होने से, बड़ा होने से या न होने से 
पूरा-पूरा असर होता है हरेक को। 
यूं तो -शून्य ही काल है व काल ही शून्य है, 
और सब शून्य से ही पैदा हुआ है   
तो अंत में
फिर शून्य में ही खो जाना है प्रत्येक को। 

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