Thursday, August 13, 2015

कर्मों उपासना


जैसे ही 
मैं उठता हूँ सुबह, 
हाथ जोड़कर ईश्वर से लेना चाहता हूँ, 
उसके संकेत, दिशा-निर्देश दिन भर के लिये। 
ताकि मैं कर सकूँ आत्मप्रण  से 
पूरा अनुसरण उनके प्रेषित संकेतों का 
और मेरा दिन,शांति,सफलता,उपकार में बीते,
लगे मेरा कण-कण, श्रण-श्रण उसी की कर्मों उपासना में। 
और यों दिन-दिन करके ही 
जीवन बन जायेगा निर्मल-निष्पाप,
बूंद-बूंद से घड़ा भर जायेगा - 
और इस घट का जल ही कभी भवसागर में मिल जायेगा 
उसी की एक पतली सुनहरी लहर बनकर याकि 
नभ में लहरायेगा, सूर्य में मिल जायेगा 
रोशनी की एक लकीर बनकर।  

No comments:

Post a Comment