जैसे ही
मैं उठता हूँ सुबह,
हाथ जोड़कर ईश्वर से लेना चाहता हूँ,
उसके संकेत, दिशा-निर्देश दिन भर के लिये।
ताकि मैं कर सकूँ आत्मप्रण से
पूरा अनुसरण उनके प्रेषित संकेतों का
और मेरा दिन,शांति,सफलता,उपकार में बीते,
लगे मेरा कण-कण, श्रण-श्रण उसी की कर्मों उपासना में।
और यों दिन-दिन करके ही
जीवन बन जायेगा निर्मल-निष्पाप,
बूंद-बूंद से घड़ा भर जायेगा -
और इस घट का जल ही कभी भवसागर में मिल जायेगा
उसी की एक पतली सुनहरी लहर बनकर याकि
नभ में लहरायेगा, सूर्य में मिल जायेगा
रोशनी की एक लकीर बनकर।
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