Monday, August 3, 2015

चाँद की चिंता

एक रात 
मैं घर से निकला तो 
चाँद आकाश पर नहीं था।  
बाजार पहुँचा तो वहाँ 
चौराहे पर चाँद गिरा पड़ा था औन्धे मुँह 
और लोग बेफ़िक्र..... 
किसी को उसकी परवाह ही नहीं थी। 
मैं चाँद को उठाकर घर ले आया,
फिर झाड़-पोंछकर 
बड़े यत्न,पूजा,प्रयासों से 
उसे आकाश में पहुँचाया। 
अब जब भी रात मैं घर से निकलता हूँ,
और किसी को दिखे न दिखे 
चाँद मुझे जरूर दिखता है,
मेरे घर से बाजार और बाजार से घर तक का
सफर वह मेरे साथ ही करता है,  
मुझे देखकर सदा हँसता है और 
शायद यही मेरा और 
चाँद का रिश्ता है। 

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