Sunday, August 23, 2015

शांति और खुशी

शांति और खुशी 
मांगने भर से आ नहीं जाती, पायी नहीं जाती। 
उसके लिए करने होते हैं जरूरी प्रयास,
भेजने होते हैं अपने भीतर व बाहर चाहत के परवाज़ 
जो, खोजें, पायें और वापिसी में उन्हें अपने भीतर समेट लायें। 

किस्मत अच्छी हो तो ये 
अपने आप भी होता चला जाता है,
मगर बिना इनके समूचा व्यक्तित्व 
पानी में डूबता पत्थर हो जाता है,
जो गलता-घुलता नहीं 
पड़ा रहता है मनोमन पानी के नीचे बदहवास 
शिला हुआ गौतम ऋषि के श्राप में,
अहिल्या जमी हो जैसे किसी राम की आत्मिक पुकार में,
जो उसे देगा फिर से अहिल्या होने, नारी होने का वरदान। 
जिससे समाज पुनः देगा सम्मान। 
याफिर समुद्र-आत्मामंथन से निकलेगी  
शांति व खुशी शांत स्वरूपा
एक अप्सरा के अंदाज में ।   















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