Tuesday, August 4, 2015

मन-मुटाव का मिटाव

सारे ही वैमनस्य 
बह जाते हैं समय की जलधार में 
और संबंध फिर से चमकने लगते हैं,
चमकीले स्टील के मांजे हुये बर्तनों से,
जो अपनी चमक खो चुके थे, 
व्यवहार में आकर,मैले-जूठे होकर।
व्यवहार की जूठन जो लिपट गयी थी 
इन बर्तनों पर इनके बार-बार इस्तेमाल के बाद,
ह्रदय को अच्छे से वक़्त के पानी में धोने-खंगालने से ही छूटती है,
और लंबे समय से आयी संबंधों में
दो तरफा चुप्पी मिल-बैठने से ही टूटती है।   
गर्त,राख या जूठन 
असल में तो वक़्त का पानी ही छुटाता है,
मगर,बुजुर्गों की सीख का झूना(झाबा) भी 
इसमें बहुत काम आता है। 
जो दिलों को रगड़ता-मलता है सीख की सख्ती से,
उसकी पुरानी से पुरानी कालक/मैल हटाता है और 
बर्तनों को इस कदर चमकाता है कि 
बर्तन हो कि संबंध ताजा होकर पुन काम में आ जाता है। 
















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