नजरिये का हिसाब है
जिससे कुछ के लिये
दो रातों के बीच में एक दिन आता है।
और नजरिये का ही हिसाब है जिनके लिये
दो दिनों में आती है सिर्फ एक रात।
वैसे तो, जो जिससे
अधिक सहमता है, भय खाता है,
उसके लिये वही अधिक, बेहिसाब हो जाता है।
असल में तो,
एक दिन के पीछे आती एक ही रात है।
सच तो ये भी है कि
जीवन में, खुशियों-गमों का भी यही हिसाब है,
जो गमों से भय खाता है,गम भी उसे अधिक सताता है।
नजरिया साध कर
गमों में मुस्कुराने का उपाय कर लो तो
खुशियों के बाद और खुशियाँ बेहिसाब हैं वरना
गम के बाद गम भी गम ही आता जाता है।
जिससे कुछ के लिये
दो रातों के बीच में एक दिन आता है।
और नजरिये का ही हिसाब है जिनके लिये
दो दिनों में आती है सिर्फ एक रात।
वैसे तो, जो जिससे
अधिक सहमता है, भय खाता है,
उसके लिये वही अधिक, बेहिसाब हो जाता है।
असल में तो,
एक दिन के पीछे आती एक ही रात है।
सच तो ये भी है कि
जीवन में, खुशियों-गमों का भी यही हिसाब है,
जो गमों से भय खाता है,गम भी उसे अधिक सताता है।
नजरिया साध कर
गमों में मुस्कुराने का उपाय कर लो तो
खुशियों के बाद और खुशियाँ बेहिसाब हैं वरना
गम के बाद गम भी गम ही आता जाता है।
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