Sunday, August 9, 2015

नजरिया

नजरिये का हिसाब है 
जिससे कुछ के लिये 
दो रातों के बीच में एक दिन आता है। 
और नजरिये का ही हिसाब है जिनके लिये 
दो दिनों में आती है सिर्फ एक रात। 
वैसे तो, जो जिससे 
अधिक सहमता है, भय खाता है,
उसके लिये वही अधिक, बेहिसाब हो जाता है। 
असल में तो,
एक दिन के पीछे आती एक ही रात है। 
सच तो ये भी है कि 
जीवन में, खुशियों-गमों का भी यही हिसाब है,
जो गमों से भय खाता है,गम भी उसे अधिक सताता है। 
नजरिया साध कर 
गमों में मुस्कुराने का उपाय कर लो तो 
खुशियों के बाद और खुशियाँ बेहिसाब हैं वरना 
गम के बाद गम भी गम  ही आता जाता है।    









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