यों जीवन का हर सवाल
कभी आईने नहीं सुलझाते।
क्योंकि प्रश्न दिखाने भर से वह सुलट नहीँ जाते,
अगर आईने ही सब कुछ सुलझाते तो
आईने ही ईश्वर न हो जाते?
फिर मंदिर-मस्जिद, देवालयों-शिवालयों को
भला कौन पूछता ?
हर गुनाह हो जाने पर लोग आइनों के आगे खड़े हो जाते।
दरअसल, आईने तुम्हारे जाने या अनजाने में किया पाप दिखाता है
और, मंदिर उसको पोंछने वाला, बख्शवाने वाला जाप बताता है।
अगर आस्था से, मन वचन से करोगे जाप,
तो एक दिन शांत होकर छूट जाओगे,
वरना, वक़्त के पानी में
लकड़ी की भटकती बैचैन, बैतूल की नांव
बनकर ही रह जाओगे।
कभी आईने नहीं सुलझाते।
क्योंकि प्रश्न दिखाने भर से वह सुलट नहीँ जाते,
अगर आईने ही सब कुछ सुलझाते तो
आईने ही ईश्वर न हो जाते?
फिर मंदिर-मस्जिद, देवालयों-शिवालयों को
भला कौन पूछता ?
हर गुनाह हो जाने पर लोग आइनों के आगे खड़े हो जाते।
दरअसल, आईने तुम्हारे जाने या अनजाने में किया पाप दिखाता है
और, मंदिर उसको पोंछने वाला, बख्शवाने वाला जाप बताता है।
अगर आस्था से, मन वचन से करोगे जाप,
तो एक दिन शांत होकर छूट जाओगे,
वरना, वक़्त के पानी में
लकड़ी की भटकती बैचैन, बैतूल की नांव
बनकर ही रह जाओगे।
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