Thursday, August 6, 2015

गवाह इतिहास


इतिहास के पन्नों में 
कभी भी साफ और स्पष्ट कुछ भी लिखा नहीं होता। 
तारीखों,क्रांतियों, सत्ताओं 
के बदलते घटनाक्रम दर्ज कर लेने से 
मानव के मानसिक तनाव या आंतरिक दबाव का गवाह इतिहास नहीं होता। 
कितनी मांओं ने अपने लाल खोये,
कितनों ने यातना के पहाड़ ढोये,
कितनों की अस्मत लुटी,
कितनों के अरमान आँसू बनकर रोये,
जब तक इन व्यत्तिगत बातों का हिसाब व सफा इसमें नहीं होता।
तब तक तारीखों,घटनाओं,नामों की फहरिस्त ही है ये किताब,
जब तक इंसानियत व बर्बरता का इसमें हिसाब जमा नहीं होता।
इसको छपवाने,पढ़ने,व अपने बच्चों को रटवाने से
कुछ भी सबब हासिल नहीं होगा,
जब तक कि इससे नसीहत लेकर
आने वाले समाज का भला नहीं होता।  

No comments:

Post a Comment