Saturday, October 28, 2017

कुछ बूढ़े
काले कौवे हैं
ऊँची डालों पर बैठे हुए
आँखों से नया देख-पढ़ नहीं
पा रहे हैं, 
पँख उनके झड़ चुके,
उड़ भी नहीं पा रहे हैं।
अपनी अपनी डाल से चिपके
काँव काँव करके बस
ककर्ष शोर मचा रहे हैं,
डर भी रहे हैं
डाल जो पंजो से छूटे जा रहे हैं इसलिए
नोजवानों को तरह-तरह से
भटका-भरमा रहे हैं और कहते हैं-
सुनो सब! 
हम नयी सुबह का गीत सलौना गा रहे हैं...
झूमो! 
हम नाचने जा रहे हैं...
सीखो!
तुम्हें उड़ना सीखा रहे हैं...? 
       -------     सुरेन्द्र भसीन


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