क्रोध के भी
अनेक घातक बम बन जाते हैं
विरोध भरे, विद्रोह सने
हर जीव के भीतर ही भीतर
तैयार धज्जियाँ उड़ाने को संबंधों की,
अस्तित्व तोड़ते इंसानी पहाड़ी इरादों का,
उजाड़ बनाते लोगों की भावनाओं के शहर के शहर,
वैमनस्य का प्रदूषण फैलाते हर और
किसी को न नजर आते, न समझ आते
जब धोखे से फटते तो
सब तहस-नहस और तबाह कर जाते
भीतर-बाहर
अपने में ,अपनों में
गहरे घाव कर जाते।
------- सुरेन्द्र भसीन
अनेक घातक बम बन जाते हैं
विरोध भरे, विद्रोह सने
हर जीव के भीतर ही भीतर
तैयार धज्जियाँ उड़ाने को संबंधों की,
अस्तित्व तोड़ते इंसानी पहाड़ी इरादों का,
उजाड़ बनाते लोगों की भावनाओं के शहर के शहर,
वैमनस्य का प्रदूषण फैलाते हर और
किसी को न नजर आते, न समझ आते
जब धोखे से फटते तो
सब तहस-नहस और तबाह कर जाते
भीतर-बाहर
अपने में ,अपनों में
गहरे घाव कर जाते।
------- सुरेन्द्र भसीन
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