कुछ नहीं है कहीं भी रहस्य
बस एक झीनी पर्दगी है अज्ञात की
समय आने पर
प्रकृति स्वयं उघाड़ती है
स्वयं को.....
सूर्य भी एक जीवंत पिंड है
धड़कनों-बंधा
आग-लपटें-तपन /उसके
श्रंगार हैं।
प्रकाश-अंधकार
हमारे अलंकार हैं धरती पर घूमते
आईने-अक्स.....
इन्हीं में बनते-मिटते सब स्वप्न
हमारी नींदें-स्मृतियां
रोदन-उल्लास-हंसियां
ऋतुएं-उनके आवर्तन
फल-फूल-रंगतें....
ये कहां थे पहले
जब नहीं थे -
तब केवल महीन पर्दा था
अब, नहीं है कहीं।
रहस्य भी यथार्थ है, अब
क्योंकि हमें ज्ञात है।
हम से बाहर
बड़ा नहीं है
हम जैसा है
जहां है ऋतुओं-अश्रुओं डूबा
उल्लासों महका
जिज्ञासाओं चहका रहस्य
कहीं कुछ नहीं है।
धरती पर, सब कुछ /यहीं है।
---------- baldev vanshi
बस एक झीनी पर्दगी है अज्ञात की
समय आने पर
प्रकृति स्वयं उघाड़ती है
स्वयं को.....
सूर्य भी एक जीवंत पिंड है
धड़कनों-बंधा
आग-लपटें-तपन /उसके
श्रंगार हैं।
प्रकाश-अंधकार
हमारे अलंकार हैं धरती पर घूमते
आईने-अक्स.....
इन्हीं में बनते-मिटते सब स्वप्न
हमारी नींदें-स्मृतियां
रोदन-उल्लास-हंसियां
ऋतुएं-उनके आवर्तन
फल-फूल-रंगतें....
ये कहां थे पहले
जब नहीं थे -
तब केवल महीन पर्दा था
अब, नहीं है कहीं।
रहस्य भी यथार्थ है, अब
क्योंकि हमें ज्ञात है।
हम से बाहर
बड़ा नहीं है
हम जैसा है
जहां है ऋतुओं-अश्रुओं डूबा
उल्लासों महका
जिज्ञासाओं चहका रहस्य
कहीं कुछ नहीं है।
धरती पर, सब कुछ /यहीं है।
---------- baldev vanshi
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