एक ओर ही नहीं
डोर के दोनों ओर
पतंग ही होती है लहराती-इठलाती
मन में ऊँचा, बहुत ऊँचा और
सदा उड़ते ही जाने का अभिमान लिए।
मगर क्या वे ऐसा कर पातीं हैं ?
अपना वक़्त खत्म होने पर
धराशायी ही तो
हो जाती हैं
ईश्वर को पाने का अधूरा अरमान लिए।
डोर के दोनों ओर
पतंग ही होती है लहराती-इठलाती
मन में ऊँचा, बहुत ऊँचा और
सदा उड़ते ही जाने का अभिमान लिए।
मगर क्या वे ऐसा कर पातीं हैं ?
अपना वक़्त खत्म होने पर
धराशायी ही तो
हो जाती हैं
ईश्वर को पाने का अधूरा अरमान लिए।
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