बुन रहे हैं, सब
अपने अपने अंधेरे
अपने अपने सवेरे
सदियों से यही क्रम
चल रहा है धरा पर
न अंधेरा हारता है
न सवेरा जीतता है
नये नये रूप रंग नमूने के अंधेरे
नयी नयी तकनीक
नयी नयी शैली शिल्प कौशल
पहले से भी आकर्षक
पहले से भी संष्लिष्ट, क्लिष्ट बुनाई
पहले से भी अनोखी विषिष्ट तुरपाई
सवेरे हांफ हांफ जाते हैं काटते हुए
अंधेरे बार बार खिलते हैं महकते हुए
सवेरे पीछे चल रहे हैं
अंधेरों के
अंधेरे आगे चल रहे हैं
सवेरों के
चक्राकार संघर्षों के युग
आ जा रहे
नये नये क्रम बन-मिट रहे
हम खामखाह पिस-पिट रहे !....
---------- baldev vanshi
अपने अपने अंधेरे
अपने अपने सवेरे
सदियों से यही क्रम
चल रहा है धरा पर
न अंधेरा हारता है
न सवेरा जीतता है
नये नये रूप रंग नमूने के अंधेरे
नयी नयी तकनीक
नयी नयी शैली शिल्प कौशल
पहले से भी आकर्षक
पहले से भी संष्लिष्ट, क्लिष्ट बुनाई
पहले से भी अनोखी विषिष्ट तुरपाई
सवेरे हांफ हांफ जाते हैं काटते हुए
अंधेरे बार बार खिलते हैं महकते हुए
सवेरे पीछे चल रहे हैं
अंधेरों के
अंधेरे आगे चल रहे हैं
सवेरों के
चक्राकार संघर्षों के युग
आ जा रहे
नये नये क्रम बन-मिट रहे
हम खामखाह पिस-पिट रहे !....
---------- baldev vanshi
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