Wednesday, December 9, 2015

वर्तमान से भविष्य......

भूतकाल से ही 
वर्तमान निकलता है और 
वर्तमान से भविष्य......   
यों तो यह सीधी लकीर है जीवन भरे बिन्दुओं की 
साँस में साँस 
हमारी जीवनमाल में आस के मनके पिरोती। 

साँस छूटने से कहीं पहले 
छूट चुकी होती है  चाह और आस जीने की। 
अगर तल शांत हो 
तो सुन सकते हो भीतरी तल से आती यह आवाज 
हमारे कहीं दूर खोने की....... 
भूतकाल में दफन सच होने की 
जो वर्तमान की परतों पर आता है 
आने वाला /होने वाला 
हमारा भविष्य कहलाता है और 
हमें अपने 
साथ ले जाता है। 

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