अतीत समयों के अनेक द्वीप हैं
भीतर
जहां आत्माएं भटकती रहती हैं हमारी
वहां के मौसमों को आत्माओं में भरकर
अपने समयों में लौट आते हैं
बार-बार
हमारे चित्त काबू में नहीं रहते
श्रण-श्रण उलट-पलट जाते हैं
एक साथ रहते हुए भी
हम अलग-अलग भटकती
द्वीपीय आत्माएं हैं। निकट इतना फिर भी
अजनबी। परस्पर.....
द्वीप ये घिरे हैं अँधेरे समुद्रों से
इनके जल में हम।
हमें अजनबी बनाते हैं
ये समयों के द्वीप !....
--------- baldev vanshi
भीतर
जहां आत्माएं भटकती रहती हैं हमारी
वहां के मौसमों को आत्माओं में भरकर
अपने समयों में लौट आते हैं
बार-बार
हमारे चित्त काबू में नहीं रहते
श्रण-श्रण उलट-पलट जाते हैं
एक साथ रहते हुए भी
हम अलग-अलग भटकती
द्वीपीय आत्माएं हैं। निकट इतना फिर भी
अजनबी। परस्पर.....
द्वीप ये घिरे हैं अँधेरे समुद्रों से
इनके जल में हम।
हमें अजनबी बनाते हैं
ये समयों के द्वीप !....
--------- baldev vanshi
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