Monday, December 21, 2015

रंगीन तितलियां 

आकाश में मंडरातीं 
मानवी ध्वनियां हैं ये 
ढुंडतीं धरती पर छूटे 
अपने स्थानों को 
स्मृतियों में बसी गंधों और परछाईयों को 

अक्षय ध्वनियां 
भटक रही हैं 
आज तक 
       आकाश  में..... 
                -------           baldev vanshi             ......... 

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