बढ़ते हुए काल में
हमारे मध्य की दूरी बढ़ रही है
और अंत की दूरी घट रही है.....
पहाड़ों को काट कर पत्थर, रोड़ी, बजरी
बनाने के क्रम में
पेड़,बत्ते, तखते, बारुदा बन रहा है
आकाश को छोटे-बड़े तहखानों, मकानों में
बदलते जाने को वायु तक कटा-फटा
वजह-बेवजह धमनियों-आँतों-शिराओं में
पानी को बे-पानी किये दे रहे नालायकी में
सब के सब स्वयं ही स्वयं के शत्रु बन रहे
शिव और शिवत्व का जन्म
हरियाली और पेड़ों, फूलों, फलों का
खुशबुओं का जन्म
अन्न और अन्न की बाली का जन्म.....
बढ़ रहा मध्य का अंतराल
घट रहा अंतकाल
हमारे बीच अब रुकती नहीं हवाएं
बदरंग, बहकी, बावली-सी गुजर जाती हैं !......
लगता है दूरी और बढ़ रही है !!
--------- baldev vanshi
पहाड़ों को काट कर पत्थर, रोड़ी, बजरी
बनाने के क्रम में
पेड़,बत्ते, तखते, बारुदा बन रहा है
आकाश को छोटे-बड़े तहखानों, मकानों में
बदलते जाने को वायु तक कटा-फटा
वजह-बेवजह धमनियों-आँतों-शिराओं में
पानी को बे-पानी किये दे रहे नालायकी में
सब के सब स्वयं ही स्वयं के शत्रु बन रहे
शिव और शिवत्व का जन्म
हरियाली और पेड़ों, फूलों, फलों का
खुशबुओं का जन्म
अन्न और अन्न की बाली का जन्म.....
बढ़ रहा मध्य का अंतराल
घट रहा अंतकाल
हमारे बीच अब रुकती नहीं हवाएं
बदरंग, बहकी, बावली-सी गुजर जाती हैं !......
लगता है दूरी और बढ़ रही है !!
--------- baldev vanshi
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