Monday, December 7, 2015

सामंजस्य और तालमेल

खिचड़ी और घालमेल से 
सामंजस्य और तालमेल कहीं ऊपर होता है,
लेन-देन और मोल-भाव से अलग
यह आजकल की सरकारें नहीं जानती 
इसलिए जनता की उम्मीदों पर खरा उतरना 
यह बिल्कुल भी वाजिब नहीं मानती। 

हार-जीत 
उनके लिये सत्ता का पहले ४०-६० था कभी
अब तो मुट्ठी भर अगड़ों-दगडों से भी नीचे उत्तर आया है और 
कौन अकेला अनपढ़ गंवार सौ पर भारी पड़ जाए 
यह राजनीति का कोई भी स्याना नहीं जानता। 

तालमेल से, सांमजस्य से 
बिना क्रोध के विरोध भी संभव है 
वरना भैंस के आगे बीन बजाने जैसा याफिर 
अंधे का स्वांग करने वाले को गंतव्य तक पहुंचाने जैसा 
सब कुछ असंभव है। 
जहाँ तालमेल में, सांमजस्य में 
एक ऋदम होता है, समझ होती है  और  
एक दूसरे के विचारों का स्थान होता है  
मगर खिचड़ी में, घालमेल में तो
घमासान होता है और  
सब का बस  भारी नुकसान होता है। 

























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