तुम्हारे
जीवन भर के संचित अनुभव
व्यर्थ नहीं जाते कभी।
देह छोड़ते ही
तुम्हारी आत्मा उन्हें ले जाती है अपने साथ
एक नये बीज का सत्व बनाने
और रोपती है
एक नई ताजी कोमल देह में।
इसी तरह धरोहर जो
आगे जाती है संस्कार बनकर काम आती है।
इसी तरह
हाँ.. ना..., सही.. गल्त
की जमीन पुख्ता होती जाती है।
No comments:
Post a Comment