छूट जाती है
यह देह हमारी यहाँ
इस बिस्तर पर और होश हमारा
निकल जाता है
हमारी अद्श्य देह लेकर
अपने ही रचे
एक श्रुण भंगुर संसार में।
तोड़ता - जोड़ता , बनता -बिगाड़ता
अतृप्त से तृप्त होने को।
पुनः होश फिर आ जुड़ता है इस देह में
तृप्त से अतृप्त होने को
नींद पूरी होने पर।
यह देह हमारी यहाँ
इस बिस्तर पर और होश हमारा
निकल जाता है
हमारी अद्श्य देह लेकर
अपने ही रचे
एक श्रुण भंगुर संसार में।
तोड़ता - जोड़ता , बनता -बिगाड़ता
अतृप्त से तृप्त होने को।
पुनः होश फिर आ जुड़ता है इस देह में
तृप्त से अतृप्त होने को
नींद पूरी होने पर।
No comments:
Post a Comment