ऊँचे पहाड़ों से
यूँ ही नहीं पहुँचता पानी
झरने से होता हुआ नदिंयों तक।
वह अपने रास्ते की चट्टानों से टकराता
उन्हें रगड़ता -तोड़ता -मेटता ,
उनके बारीक से बारीक छिद्रों का लाभ उठाता
और मजबूर करके उन्हें अपने संग घसीट लाता है
नदियों व मैदानों में।
यह हमे यही तो सिखलाता है कि भले
जीवन की समस्याऐं बनी हों कितनी भी कठोर चट्टानों से
मगर उनको बहा कर
चलते जाना ही जीवन है।
No comments:
Post a Comment